News

Makar Sankranti 2025 : यहां मकर संक्रांति को कहते हैं तिला संकरायत! 4 दिन पहले से शुरू हो जाती है तैयारी, जानिए इसका महत्व.

Photo of author
By Samastipur Today Desk
Makar Sankranti 2025 : यहां मकर संक्रांति को कहते हैं तिला संकरायत! 4 दिन पहले से शुरू हो जाती है तैयारी, जानिए इसका महत्व.

 

Makar Sankranti 2025: मकर संक्रांति का त्योहार कल यानी 14 जनवरी 2025 को पूरे देश में मनाया जाएगा। मकर संक्रांति हिंदुओं का एक महत्वपूर्ण त्योहार है। यह त्योहार तब मनाया जाता है जब सूर्य देव मकर राशि में प्रवेश करते हैं। इस दिन सूर्य देव और भगवान विष्णु की पूजा का विशेष महत्व होता है। यहां हम आपको मकर संक्रांति त्योहार से जुड़ी कुछ जानकारी दे रहे हैं। क्या आप जानते हैं कि मकर संक्रांति को हमारे देश में तिला संकरायत कहते हैं। बल्कि पूरे मिथिला क्षेत्र में लोग इस त्योहार को इसी नाम से जानते हैं। इस दिन लोग दही, चूड़ा, लाई, तिलवा, तिलकुट खाते हैं।

   

 

मिथिला में मकर संक्रांति की तैयारी 4 दिन पहले से ही शुरू हो जाती है, क्योंकि घर की बेटी, रिश्तेदारों को दही-चूड़ा भी भेजा जाता है। इसकी शुरुआत घर में दही जमने से होती है। मकर संक्रांति पर सूर्य देव की विशेष पूजा और आराधना की जाती है। इस दिन सूर्य देव की कृपा पाने और कुंडली में मौजूद सभी तरह के दोषों को दूर करने के लिए आदित्य हृदय स्तोत्र का पाठ किया जाता है। इससे लोगों को सूर्य देव की कृपा प्राप्त करने में मदद मिलती है।

 

सुबह जल्दी उठकर नहाना जंग जीतने जैसा:

मिथिलांचल में तिला संकरायत से एक दिन पहले ही घूरा (अलाव) की व्यवस्था कर दी जाती है ताकि इस ‘पौष की ठंड’ में नहाकर शरीर को गर्म किया जा सके। इस दिन सुबह जल्दी उठकर नहाना भी जंग जीतने के बराबर है। अन्य दिनों में लोग नहाते नहीं हैं, लेकिन इस दिन बिना नहाए कोई चारा नहीं है। जो सबसे पहले नहा लेता है, वह खुद को ‘गामा पहलवान’ से कम नहीं समझता। वह दूसरों से भी कहता है कि “नहा लो, ठंड नहीं लगेगी। “

लाई तिलवा खाने का उत्साह:

मकर संक्रांति पर लोग अन्य दिनों की तुलना में जल्दी उठ जाते हैं. लेकिन ठंड के कारण बच्चे तो छोड़िए, बड़े भी रजाई से बाहर निकलने की हिम्मत नहीं जुटा पाते. घर की दादी सभी को प्रोत्साहित करती रहती हैं कि “जितनी बार तालाब में डुबकी लगाओगे, उतने ही तिल के लड्डू पाओगे।” (जितनी बार तालाब में डुबकी लगाओगे, उतने ही तिल के लड्डू पाओगे)। तिलवा मिलने की खुशी में बच्चे नहाने चले जाते हैं।

 

 

 

कड़वे तेल से नहाना:

इस दिन लोग नदी, तालाब, कुएं के पानी से नहाते हैं। लोग हैंडपंप पर भी नहाते हैं। बच्चों को सबसे ज्यादा चिंता इस बात की होती है कि इस ठंड में कैसे नहाएं। रजाई से बाहर आकर स्वेटर और टोपी खोलते ही शरीर तलवार की तरह सख्त हो जाता है। बड़े-बुजुर्ग कहते हैं कि “भुआ कड़वा तेल (सरसों का तेल) लगाकर नहाना चाहिए, ठंड नहीं लगेगी”। कभी-कभी बच्चों के लिए गर्म पानी की व्यवस्था भी कर दी जाती है।

नहाना नहीं है सजा :

आमतौर पर इस दिन सूरज कम चमकता है। अगर निकलता भी है तो देर से निकलता है। इस दिन जो सुबह जल्दी स्नान नहीं करता, उसके लिए यह दंड माना जाता है। दादी कहती हैं कि “बिना स्नान किए तुम्हें कुछ भी खाने को नहीं मिलेगा।” स्नान के बाद सबसे पहले दादी और मां अपने बेटे और पोते को तिल, गुड़ और चावल का प्रसाद देती हैं।

सबसे पहले तिलकुट भरना होता है: मिथिलांचल में तिल, गुड़ और चावल का भी विशेष महत्व है। इसे तिलकुट भरना कहते हैं। इस दिन मां और दादी दोनों अपने बेटे और पोते को तिल, गुड़ और चावल देते हुए कहती हैं- ‘तिलकट भरवा नै’। इस पर बेटा और पोता हां में जवाब देते हैं। ऐसा तीन बार कहा जाता है और हर बार जवाब हां में होता है।

मां अपने बच्चों से मांगती हैं वचन :

तिलकुट भरने का मतलब है कि मां अपने बच्चों से वचन लेती है। बच्चे अंतिम समय तक अपनी मां का साथ नहीं छोड़ें, चाहे वे देश में हों या विदेश में। वचन लिया जाता है कि उनका बेटा मृत्यु के समय उनकी आंखों के सामने हो। बेटा भी मां से वादा करता है कि वह आखिरी वक्त तक उसके साथ रहेगा और मरने के बाद उसे कंधा जरूर देगा। दादी-नानी भी अपने पोतों से यही वादा लेती हैं, क्योंकि पोते भी बेटों से कम प्यारे नहीं होते।

 

 

क्या है वचन मांगने की परंपरा?

ज्योतिर्वेद विज्ञान संस्थान के निदेशक ज्योतिषाचार्य डॉ. राजनाथ झा बताते हैं कि मिथिला में सैकड़ों सालों से यह परंपरा चली आ रही है। चावल, तिल और गुड़ खिलाकर मां अपने बच्चों और परिवार के छोटे सदस्यों से वचन  मांगती है और बदले में आशीर्वाद देती है।

विवाहित बेटी को नहीं दिया जाता तिलकुट:

डॉ. राजनाथ झा ने बताया कि घर की महिलाएं परिवार के सदस्यों और अपने से छोटे बच्चों को तिलकुट भरकर देती हैं। इसे बड़ों को नहीं खिलाया जाता। इसे घर की विवाहित बेटी को भी नहीं दिया जाता। क्योंकि शादी के बाद बेटी दूसरे घर जाएगी और वहां की परंपरा का पालन करेगी। दूसरे कुल का फर्ज निभाएगी। हालांकि, इसे अविवाहित बेटियों को दिया जाता है।

तुसारी पूजा:

डॉ. राजनाथ झा ने बताया कि मकर संक्रांति के दिन मिथिलांचल में अविवाहित बेटियों के लिए एक विशेष पूजा शुरू की जाती है, जिसे “तुसारी पूजा” कहा जाता है। जो लड़की तुसरी पूजा शुरू करती है, वह मां गौरी की पूजा करती है। तुसरी पूजा मकर संक्रांति से शुरू होकर कुंभ संक्रांति तक यानी 1 महीने तक चलती है।

Leave a Comment