टेलीविजन की दुनिया में ‘भीष्म पितामह’ और ‘शक्तिमान’ जैसे प्रतिष्ठित किरदार निभा चुके अभिनेता मुकेश खन्ना इन दिनों सामाजिक और राजनीतिक मुद्दों पर बेबाक राय देने के लिए भी चर्चा में रहते हैं। हाल ही में समस्तीपुर पहुंचे मुकेश खन्ना ने एक शैक्षणिक कार्यक्रम में हिस्सा लेने के बाद बिहार की वर्तमान स्थिति पर कई गंभीर सवाल उठाए।

समस्तीपुर के एक निजी विद्यालय में आयोजित कार्यक्रम में भाग लेने आए अभिनेता मुकेश खन्ना ने मीडिया से बातचीत के दौरान बिहार की शिक्षा, कानून व्यवस्था और राजनीति को लेकर चिंता जताई। उन्होंने कहा कि कभी विश्वभर में शिक्षा का केंद्र रहा नालंदा आज गुमनामी के अंधेरे में चला गया है। उन्होंने तंज कसते हुए कहा, “आज बिहार में शिक्षा नाम की चीज बस किताबों में रह गई है।”

खन्ना ने परीक्षा के दौरान नकल की घटनाओं का जिक्र करते हुए मीडिया पर भी कटाक्ष किया। उन्होंने कहा, “टीवी में दिखता है कि बच्चे परीक्षा दे रहे होते हैं और खिड़की पर लोग पाइप से उत्तर बता रहे होते हैं।” उनका मानना है कि मंदिर जितने खुलते हैं, अगर उतने स्कूल भी खुलें तो हालात कुछ बेहतर हो सकते हैं।


राजनीति पर बोलते हुए उन्होंने कहा कि बिहार आज भी ‘लालू और आलू’ की राजनीति से ऊपर नहीं उठ पाया है। उन्होंने नेताओं की बयानबाजी पर टिप्पणी करते हुए कहा, “लालू जी ने कहा था कि बिहार की सड़कें हेमा मालिनी के गाल जैसी होंगी, लेकिन हकीकत कुछ और ही है।”

मुकेश खन्ना ने लोगों से ज्यादा जागरूक और जिम्मेदार बनने की अपील की। उन्होंने कहा कि केवल नेताओं को दोष देने से कुछ नहीं होगा, जब तक आम लोग खुद में बदलाव नहीं लाएंगे। “बिहार में हर घर में कट्टा होना, ये दर्शाता है कि कानून व्यवस्था की स्थिति कितनी चिंताजनक है,” उन्होंने जोड़ा।
उन्होंने देश की राजनीति पर भी सवाल उठाते हुए कहा कि जब प्रधानमंत्री कहते हैं ‘देश प्रगति कर रहा है’, तो बिहार उस प्रगति में क्यों पीछे रह गया है? उन्होंने बुलेट ट्रेन की बजाय सामान्य ट्रेनों की संख्या बढ़ाने की बात कही और कहा कि लोग आज भी ट्रेनों में लटक कर सफर करने को मजबूर हैं।
देश की संघीय व्यवस्था पर बोलते हुए उन्होंने कहा कि “अब फिर से देश रियासतों में बंटता दिख रहा है — केरल अलग, पंजाब अलग, बिहार अलग।” उनका मानना है कि केंद्र और राज्य में एक जैसी सरकार होने से विकास कार्यों में तालमेल बेहतर हो सकता है, अन्यथा दिल्ली जैसा टकराव हर जगह होगा।
अंत में उन्होंने शिक्षा प्रणाली में गुरुकुल परंपरा को फिर से शुरू करने की बात कही। उन्होंने कहा, “गुरुकुल में बच्चा 13 साल में जीवन के हर पहलू की समझ हासिल करता था। आज की शिक्षा उस स्तर पर नहीं है।”
