Bihar

Lalit Narayan Mishra Murder Case : एक धमाका ! जिसने रोक दी मिथिलांचल के विकास का पहिया, क्यों हुई थी ललित बाबू की हत्या ?

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By Samastipur Today Desk
Lalit Narayan Mishra Murder Case : एक धमाका ! जिसने रोक दी मिथिलांचल के विकास का पहिया, क्यों हुई थी ललित बाबू की हत्या ?

 

Lalit Narayan Mishra Murder Case : 50 साल पहले पूर्व रेल मंत्री ललित नारायण मिश्रा की समस्तीपुर रेलवे स्टेशन पर हत्या कर दी गई थी। इतने सालों बाद भी इस हत्या का रहस्य अभी तक अनसुलझा है। उस समय इस हत्या ने पूरे देश में सनसनी मचा दी थी। किसी ने उम्मीद भी नहीं की थी कि रेल मंत्री की हत्या राज्य में इस तरह सरेआम कर दी जाएगी और वो भी उनके गृह जिले के बगल में।

   

जानकारी के मुताबिक, 2 जनवरी 1975 को तत्कालीन इंदिरा गांधी सरकार के रेल मंत्री ललित नारायण मिश्रा को समस्तीपुर और मुजफ्फरपुर के बीच बड़ी रेल लाइन का उद्घाटन करना था। शाम का वक्त था, रेल मंत्री ललित बाबू (मिथिला के लोग उन्हें इसी नाम से पुकारते थे) तय समय पर रेलवे स्टेशन पहुंचे। मंच पर उनके छोटे भाई जगन्नाथ मिश्रा के अलावा कांग्रेस एमएलसी सूर्यनारायण झा भी थे।

 

बम विस्फोट से हुई थी ललित बाबू की हत्या:

इस अवसर पर समस्तीपुर जंक्शन के प्लेटफार्म संख्या 3 पर आयोजित कार्यक्रम में रेलवे की उपलब्धियां गिनाते हुए ललित नारायण मिश्र अपना भाषण समाप्त कर मंच से उतर रहे थे, तभी अचानक भीड़ में से किसी व्यक्ति ने उनकी ओर बम फेंका। जोरदार विस्फोट हुआ और सब कुछ धुआं-धुआं हो गया। जब धुआं छंटा तो ललित नारायण मिश्र, जगन्नाथ मिश्र, विधान पार्षद सूर्यनारायण झा समेत 29 लोग घायल हो गए। इसके बाद ललित नारायण मिश्र को इलाज के लिए ट्रेन से पटना के दानापुर स्थित रेलवे अस्पताल ले जाया गया। लेकिन बुरी तरह घायल ललित बाबू की 3 जनवरी 1975 को इलाज के दौरान मौत हो गई।

 

ललित बाबू की हत्या क्यों हुई?

इस हत्या को लेकर कई तरह की चर्चाएं हैं। लेकिन एक बात जो साफ है वह यह कि ललित बाबू का कद देश में इतना बढ़ गया था कि उनकी अपनी पार्टी के बड़े नेता भी उनसे डरने लगे थे। ललित बाबू राज्य के साथ-साथ मिथिला क्षेत्र में भी लोकप्रियता की सीढ़ियां चढ़ रहे थे। कुछ लोग तो यहां तक ​​कहते हैं कि उनकी लोकप्रियता ही उनकी जान की दुश्मन बन गई। लेकिन सच्चाई क्या है, यह कोई नहीं जानता।

कौन थे ललित नारायण मिश्रा ?

ललित नारायण मिश्रा का जन्म 2 फरवरी 1923 को बिहार के सहरसा जिले के बलुआ बाजार में हुआ था। उन्हें मिथिला का विकास पुरुष कहा जाता है। मिथिला के लोग ललित नारायण मिश्रा को ‘ललित बाबू’ कहकर पुकारते थे। लोग कहते हैं कि अगर ललित बाबू की असमय हत्या नहीं हुई होती तो आज मिथिला की तस्वीर कुछ और होती। यह क्षेत्र काफी तरक्की कर चुका होता। उनके बाद आज तक इस क्षेत्र को इतना बड़ा नेता नहीं मिला। उनकी मौत की वजह से मिथिला की कई रेल परियोजनाएं आज तक पूरी नहीं हो पाई हैं।

 

 

किसने रची थी साजिश ?

जब ललित नारायण मिश्रा की हत्या हुई तो वे रेल मंत्री थे। कुछ लोग यह भी कहते हैं कि अगर वे जिंदा होते तो प्रधानमंत्री बन जाते, यहां तक ​​कि तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी भी उन्हें पीएम बनने से नहीं रोक पातीं। यह भी कहा जाता है कि अगर ललित बाबू जिंदा होते तो जेपी कभी इंदिरा गांधी के खिलाफ प्रदर्शन नहीं करते। हत्या हुई, यानी साजिश रची गई। उनकी मौत के समय शुरू हुई अफवाहें कभी खत्म नहीं हुईं।

इससे जुड़ी कई बातें हैं – कई अफ़वाहें हैं, जो आज भी रहस्य बनी हुई हैं। इस हत्याकांड की सीबीआई जांच भी हुई थी। सीबीआई की चार्जशीट में विनयानंद, संतोषानंद, विश्वेश्वरानंद को आरोपी बनाया गया था। कहा जाता है कि इस घटना के पीछे आनंद मार्ग प्रचारक संघ की स्थापना करने वाले पीआर सरकार यानी प्रभात रंजन सरकार के समर्थकों का हाथ था।

2014 में दोषियों को हुई थी सजा:

दिसंबर 2014 में यहां की निचली अदालत ने पूर्व रेल मंत्री और दो अन्य की हत्या के मामले में संतोषानंद, सुदेवानंद, गोपालजी और अधिवक्ता रंजन द्विवेदी को आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी।

आज भी गुत्थी अनसुलझी ?

सालों बाद आज भी इस हत्याकांड की गुत्थी उलझी हुई ही है। 39 साल बाद जब कोर्ट का फैसला आया तो ललित बाबू के घरवाले इस फैसले से सहमत नहीं हुए। 2014 में दिल्ली सेशन कोर्ट ने रंजन द्विवेदी, संतोषानंद, सुदेवानंद और गोपाल जी को उम्रकैद की सजा सुनाई। इस फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील तक हुई। 2015 में आरोपी जमानत पर भी छूट गए। लेकिन ललित बाबू के परिवार ने हर बार यही कहा कि जिनको सजा हुई वो दोषी थे ही नहीं।

   

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