Bihar Election 2025 : बिहार में अगले कुछ महीनों में विधानसभा चुनाव होने हैं और उससे पहले इस राज्य ने एक नया इतिहास रच दिया है। बिहार के जरिए स्थानीय निकाय चुनाव में पहली बार मोबाइल आधारित ई-वोटिंग की सुविधा दी गई। इस तरह बिहार मोबाइल फोन आधारित ई-वोटिंग सिस्टम लागू करने वाला देश का पहला राज्य बन गया है। आइए जानते हैं ई-वोटिंग के बारे में, इसका इस्तेमाल कैसे और किस तरह से किया जा सकता है। इस प्रक्रिया की शुरुआत सबसे पहले किस देश में हुई थी।

राज्य चुनाव आयुक्त दीपक प्रसाद ने इस उपलब्धि पर कहा कि ई-वोटिंग के लिए पात्र 70.20 प्रतिशत मतदाताओं ने इस नई प्रणाली का इस्तेमाल किया जबकि 54.63 प्रतिशत ने मतदान केंद्र पर जाकर अपने मताधिकार का प्रयोग किया। राज्य चुनाव आयोग ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर कहा, “बिहार ने इतिहास रच दिया है। पूर्वी चंपारण जिले के पकरी दयाल की रहने वाली बिभा कुमारी स्थानीय निकाय चुनाव के दौरान मोबाइल फोन के जरिए वोट डालने वाली देश की पहली ई-वोटर बन गई हैं।”

ई-वोटिंग क्या है?
पकरी दयाल की रहने वाली बिभा देवी ने देश की पहली महिला ई-वोटर बनकर इतिहास रच दिया, जबकि मुन्ना कुमार देश के पहले पुरुष ई-वोटर बने। दोनों ने ही निकाय चुनाव में मोबाइल के जरिए वोट डाला। बिहार के जरिए भारतीय लोकतंत्र के इतिहास में एक नई डिजिटल क्रांति की शुरुआत हुई है। 3 जिलों के 6 नगर परिषदों में हुए उपचुनाव में सिर्फ बिभा और मुन्ना ही नहीं, बल्कि कई मतदाताओं ने घर बैठे अपने मताधिकार का प्रयोग किया। इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग का मतलब ई-वोटिंग है, यानी मतदाता अपने घर, दूसरे देश या मतदान केंद्र पर लगे कियोस्क से अपना वोट डाल सकते हैं। क्या वोट डालने के बाद बदल सकेंगे: ई-वोटिंग ऐप में एक ही मोबाइल नंबर से सिर्फ 2 मतदाता ही लॉग इन कर सकेंगे। वोट डालने से पहले मतदाता की पहचान वोटर आईडी से सत्यापित की जाएगी। e-SECBHR नाम का ऐप सिर्फ एंड्रॉयड मोबाइल फोन के लिए बनाया गया है। इसे डाउनलोड करने के बाद इसमें अपना नंबर रजिस्टर करना होगा। मतदाता को इसे मतदाता सूची में दर्ज मोबाइल नंबर से लिंक करना होगा। फिर सत्यापन पूरा होने के बाद मतदाता ई-वोटिंग ऐप के जरिए अपना वोट डाल सकेगा। वोट केवल मतदान के दिन ही डाले जा सकेंगे। खास बात यह है कि एक बार वोट डालने के बाद मतदाता दोबारा वोट नहीं डाल सकेगा।

कैसे काम करती है ई-वोटिंग प्रणाली:
नई ई-वोटिंग प्रक्रिया को खास तौर पर सुरक्षित और छेड़छाड़-रहित रखने के लिए डिजाइन किया गया है। ब्लॉकचेन तकनीक यह सुनिश्चित करती है कि वोट सुरक्षित रखे जा सकें और उसमें कोई बदलाव न किया जा सके।
ई-वोटिंग प्रणाली में इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (ईवीएम) में इस्तेमाल होने वाले वोटर वेरिफिएबल पेपर ऑडिट ट्रेल (वीवीपीएटी) सिस्टम की तरह ऑडिट ट्रेल शामिल है, जबकि मतदान प्रक्रिया को बेहतर बनाने के लिए फेस रिकॉग्निशन सिस्टम (एफआरएस), वोटों की गिनती के लिए ऑप्टिकल कैरेक्टर रिकॉग्निशन (ओसीआर) और ईवीएम स्ट्रांगरूम के लिए डिजिटल लॉक का भी समानांतर इस्तेमाल किया जा रहा है। इस प्रणाली में ब्लॉकचेन प्लेटफॉर्म जैसी सुविधाएं भी शामिल हैं।
राज्य चुनाव आयुक्त दीपक प्रसाद का कहना है कि इसके लिए मजबूत डिजिटल सुरक्षा उपाय लागू किए गए हैं। प्रवासी मजदूर, प्रवासी मतदाता, बुजुर्ग, वरिष्ठ नागरिक, दिव्यांग मतदाता, गर्भवती महिलाएं और गंभीर रूप से बीमार मतदाता इस प्रक्रिया का उपयोग कर अपना वोट डाल सकेंगे।
कब शुरू हुई ई-वोटिंग:
एस्टोनिया ने वर्ष 2005 में ऑनलाइन वोटिंग शुरू की थी, लेकिन दुनिया भर में अभी भी ई-वोटिंग सिस्टम विकसित किए जा रहे हैं।

एस्टोनिया से इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग की शुरुआत हुई। उसके बाद बेल्जियम, फ्रांस, जर्मनी, नॉर्वे, पेरू, स्विट्जरलैंड जैसे कई यूरोपीय देशों के साथ-साथ ऑस्ट्रेलिया, नामीबिया, वेनेजुएला और फिलीपींस जैसे देशों में भी ई-वोटिंग की प्रक्रिया के जरिए चुनाव कराए गए। हालांकि, इसकी सुरक्षा के कारण कई देशों ने इसे शुरू होने के बाद बंद कर दिया।

