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Save Aravalli Save Himalaya : ‘अरावली बचाओ–हिमालय बचाओ’ अभियान के तहत भाकपा-माले का प्रतिरोध मार्च, पर्यावरण संरक्षण को लेकर उठी आवाज.

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By Samastipur Today Desk

 


 

Save Aravalli Save Himalaya : ‘अरावली बचाओ–हिमालय बचाओ’ अभियान के तहत भाकपा-माले का प्रतिरोध मार्च, पर्यावरण संरक्षण को लेकर उठी आवाज.

 

Save Aravalli Save Himalaya  : समस्तीपुर में भाकपा-माले की अपील पर ‘अरावली बचाओ–हिमालय बचाओ’ और ‘पर्यावरण बचाओ–भारत बचाओ’ अभियान का आयोजन किया गया। इस दौरान भाकपा-माले कार्यकर्ताओं ने समस्तीपुर शहर सहित जिले के विभिन्न प्रखंडों में प्रतिरोध मार्च निकाला।

 

शहर में प्रतिरोध मार्च मालगोदाम चौक स्थित माले कार्यालय से शुरू होकर विभिन्न मार्गों से होते हुए स्टेशन चौक पहुंचा, जहां सभा आयोजित की गई। सभा को संबोधित करते हुए भाकपा-माले के जिला सचिव प्रो. उमेश कुमार ने कहा कि अरावली पर्वतमाला और हिमालय क्षेत्र में खनिज दोहन व अंधाधुंध खुदाई के कारण पर्यावरण पर गंभीर खतरा मंडरा रहा है। उन्होंने कहा कि भविष्य की पीढ़ी को सुरक्षित और स्वच्छ भारत देने के उद्देश्य से पार्टी ने देशव्यापी प्रतिरोध अभियान शुरू किया है।

उमेश कुमार ने कहा कि “हम चाहते हैं कि देश का प्राकृतिक संतुलन बना रहे। इसलिए यह विरोध मार्च केवल राजनीतिक आंदोलन नहीं, बल्कि पर्यावरण बचाने का जनआंदोलन है।”

भाकपा-माले नेता ललन कुमार ने कहा कि केंद्र सरकार की नीतियों के कारण जल-जंगल-जमीन और अब पर्वत श्रृंखलाएँ भी पूंजीपतियों के हवाले की जा रही हैं। वहीं, जिला स्थायी समिति सदस्य महावीर पोद्दार ने आरोप लगाया कि सार्वजनिक संपत्तियों को निजी हाथों में सौंपने के बाद अब अरावली पर्वतमाला को भी नुकसान पहुँचाया जा रहा है, जिससे पर्यावरणीय आपदाओं का खतरा बढ़ गया है।

जिला स्थायी समिति सदस्य फूलबाबू सिंह ने कहा कि अरावली विश्व की सबसे पुरानी पर्वत श्रृंखलाओं में से एक है और इसका बड़ा हिस्सा खनन माफियाओं के कब्जे में जा चुका है। यह समस्या केवल अरावली तक सीमित नहीं है, बल्कि पूरे देश में प्राकृतिक संसाधनों के दोहन का हिस्सा बन चुकी है।

क्या है अरावली विवाद?

सुप्रीम कोर्ट ने 20 नवंबर 2025 को केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय की समिति की उस सिफारिश को मंजूरी दी, जिसमें 100 मीटर या उससे अधिक ऊंचाई वाली पहाड़ियों को ही अरावली के रूप में मान्यता देने की बात कही गई है। पहले अरावली क्षेत्र को व्यापक संरक्षण प्राप्त था। नए निर्णय के बाद राजस्थान, हरियाणा और दिल्ली-एनसीआर में विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं।

पर्यावरणविदों का कहना है कि 100 मीटर से कम ऊंचाई वाली पहाड़ियों में खनन की अनुमति मिलने से अरावली रेंज के अस्तित्व पर खतरा पैदा हो जाएगा। जबकि केंद्र सरकार का कहना है कि संरक्षण जारी रहेगा और गलतफहमी दूर की जानी चाहिए।