समस्तीपुर का सदर अस्पताल, जो जिले का सबसे बड़ा सरकारी अस्पताल माना जाता है, इन दिनों इलाज के बजाय मरीजों को रेफर करने के लिए ज्यादा चर्चित हो गया है। हालात यह हैं कि मामूली गंभीर मरीजों को भी डॉक्टर बिना ज्यादा जांच-पड़ताल किए हायर सेंटर भेज देना ही सही समझते हैं।

इस रवैये से सबसे ज्यादा परेशानी गरीब मरीजों को होती है, जो महंगे निजी अस्पतालों में इलाज कराने में सक्षम नहीं होते। सड़क हादसा, गोली लगना या सिर में चोट जैसे मामलों में प्राथमिक उपचार कर डॉक्टर तुरंत मरीज को पीएमसीएच या डीएमसीएच रेफर कर देते हैं। कई बार तो डॉक्टर की जगह ओटी असिस्टेंट ही पट्टी कर मरीज को बाहर भेज देता है।

चिकित्सक न तो गंभीरता से इलाज की समीक्षा करना चाहते हैं और न ही किसी तरह का जोखिम लेना चाहते हैं। ऐसे में रेफर किए गए मरीज मजबूरी में निजी अस्पतालों के चक्कर काटते हैं। कई बार इलाज में देरी से उनकी हालत और बिगड़ जाती है। यह समस्या सिर्फ आम लोगों तक सीमित नहीं है, बल्कि पुलिसकर्मी और अधिकारी भी इस स्थिति से जूझते हैं।

हालात यह हैं कि आर्थिक रूप से सक्षम लोग तो बाहर इलाज करा लेते हैं, लेकिन गरीब मरीज रेफर होने के बाद दर-दर भटकते हैं। अस्पताल प्रशासन मरीजों को बाहर भेज कर अपनी जिम्मेदारी पूरी मान लेता है।


गौरतलब है कि सदर अस्पताल में 100 से अधिक डॉक्टरों के पद सृजित हैं, लेकिन फिलहाल सिर्फ 45 डॉक्टर ही सेवा में हैं। ऐसे में मरीजों को समुचित इलाज मिलने की उम्मीद धीरे-धीरे धूमिल होती जा रही है।


