समस्तीपुर के पूसा स्थित खादी ग्रामोद्योग समिति ने खादी वस्त्रों को एक नई पहचान दी है। अब खादी केवल सफेद कपड़ों तक सीमित नहीं रह गई है, बल्कि रंगीन और ऊनी वस्त्रों के उत्पादन ने इसे फैशन और परंपरा का संगम बना दिया है। खादी में आए इन बदलावों ने न केवल युवाओं को आकर्षित किया है, बल्कि इसके बाजार को भी नई ऊंचाइयां दी हैं। समस्तीपुर अनुमंडलीय खादी ग्रामोद्योग समिति के मंत्री धीरेंद्र कारजी ने बताया कि खादी का स्वरूप बदल चुका है। युवाओं की पसंद और बाजार की मांग को ध्यान में रखते हुए अब खादी विभिन्न रंगों और डिजाइन में उपलब्ध है। जैकेट, शॉल, स्वेटर, टोपी जैसे ऊनी वस्त्रों से लेकर रंगीन शर्ट और पैंट तक का उत्पादन हो रहा है।
खादी की लोकप्रियता बढ़ाने के लिए स्थानीय कारीगरों को विशेष प्रशिक्षण दिया गया है। समिति के 15 विभिन्न काउंटरों पर खादी उत्पादों की बिक्री हो रही है। मंत्री ने बताया कि खादी की बढ़ती मांग को देखते हुए उत्पादन क्षमता को और बढ़ाने की योजना है।

पिछले वर्ष खादी का कारोबार 45 से 50 लाख रुपये का हुआ था, जो इस बार 20 से 25% तक बढ़ने की उम्मीद है। ग्राहकों को आकर्षित करने के लिए विभिन्न उत्पादों पर छूट दी जा रही है। खादी के उत्पादों की मांग न केवल समस्तीपुर में बल्कि मधुबनी, दरभंगा और अन्य जिलों में भी बढ़ रही है। खादी के प्रति युवाओं का उत्साह भी सराहनीय है।
अनस रिजवान, एक स्थानीय युवा, का मानना है कि खादी महात्मा गांधी की विरासत का प्रतीक है। उनका कहना है कि खादी पहनने से देशभक्ति की भावना प्रबल होती है और स्वदेशी उत्पादों को बढ़ावा मिलता है। संजीत कुमार जैसे खादी के नियमित उपयोगकर्ता मानते हैं कि खादी अब पुराना मोटा कपड़ा नहीं रहा। यह अब फैशनेबल और रंगीन बन गया है, जो हर उम्र के लोगों को पसंद आ रहा है।


