समस्तीपुर शहर में स्वास्थ्य सेवाओं के बढ़ते विस्तार के बीच निजी स्वास्थ्य केंद्रों की लापरवाही से एक गंभीर समस्या उभर रही है। खुले में फेंका जा रहा मेडिकल कचरा न केवल पर्यावरण को प्रदूषित कर रहा है, बल्कि मानव और पशु-पक्षियों के स्वास्थ्य पर भी भारी संकट खड़ा कर रहा है। प्रशासन की सख्ती के बावजूद, बार-कोडिंग प्रणाली लागू करने में असफलता ने स्थिति को और विकट बना दिया है।
मेडिकल कचरे से होने वाले खतरे:
खुले में पड़े मेडिकल कचरे में शामिल दूषित सुई, रक्त, रसायन और रेडियोएक्टिव तत्व कई खतरनाक बीमारियों का कारण बन सकते हैं। इनमें हेपेटाइटिस बी और सी, एचआईवी/एड्स, टीबी, टायफाइड, डायरिया, और त्वचा संबंधी रोग शामिल हैं। इसके अतिरिक्त, जल और वायु प्रदूषण से कैंसर और अन्य दीर्घकालिक बीमारियों का खतरा भी बढ़ जाता है।
बार-कोडिंग प्रणाली क्यों है आवश्यक?
स्वास्थ्य विभाग ने निजी स्वास्थ्य केंद्रों को निर्देश दिया है कि मेडिकल कचरे पर बार-कोड लगाना अनिवार्य है। इससे यह पता लगाया जा सकता है कि कचरा किस संस्थान का है और वह कितनी मात्रा में उत्पन्न हुआ है। साथ ही, कचरे के सही निस्तारण की निगरानी करना भी संभव होगा।
प्रशासन की चुनौतियां और प्रयास:
हालांकि बार-कोडिंग प्रणाली को लागू करने के निर्देश दिए जा चुके हैं, लेकिन शहर के अधिकांश अस्पताल, पैथोलॉजी और अल्ट्रासाउंड केंद्र इस नियम का पालन नहीं कर रहे हैं। सिविल सर्जन डॉ. एसके चौधरी ने कहा कि सड़कों पर कचरा फेंकने वाले संस्थानों पर कार्रवाई की जाएगी। इसके लिए नगर निगम के साथ बैठक की योजना बनाई गई है। नियमों का पालन न करने वाले संस्थानों का रजिस्ट्रेशन रद्द करने का प्रावधान भी है।
समस्या की गंभीरता:
मेडिकल कचरे का जल स्रोतों में मिलना या खुली जगहों पर फेंकना न केवल बीमारियों को जन्म देता है, बल्कि यह संक्रमण फैलाने वाले मच्छरों और फंगल संक्रमण का भी बड़ा कारण बन सकता है। इस समस्या का समाधान किए बिना शहर के स्वास्थ्य और पर्यावरण को सुरक्षित रखना संभव नहीं है।