बिहार में चाय की खेती का दायरा अब सिर्फ किशनगंज तक सीमित नहीं रहेगा। प्रदेश के अररिया, सुपौल, पूर्णिया और कटिहार जिलों में भी अब चाय की खेती को बढ़ावा देने की योजना बनाई गई है। इस विस्तार के साथ, राज्य सरकार किसानों को चाय की खेती के लिए आर्थिक सहायता भी प्रदान करेगी, जिससे नए क्षेत्रों में इस उद्योग का विकास हो सकेगा।
किशनगंज जिले में लंबे समय से चाय की खेती होती आ रही है, और इस क्षेत्र में चाय उत्पादन के लिए अनुकूल वातावरण भी पाया गया है। लेकिन अब राज्य सरकार ने इसे और भी विस्तार देने का निर्णय लिया है। कृषि विभाग ने अररिया, सुपौल, पूर्णिया, और कटिहार जिलों में चाय की खेती को प्रोत्साहित करने के लिए एक विस्तृत योजना बनाई है। इस योजना के तहत किसानों को 0.1 हेक्टेयर से लेकर 4 हेक्टेयर तक की भूमि पर चाय की खेती के लिए अनुदान प्रदान किया जाएगा।
इस योजना के अनुसार, चाय की खेती के लिए प्रति हेक्टेयर 4.94 लाख रुपये का खर्च अनुमानित है। सरकार इस खर्च का 50% यानी 2.47 लाख रुपये अनुदान के रूप में देगी, जो दो किस्तों में किसानों को प्रदान किया जाएगा। पहली किस्त के रूप में 75% राशि दी जाएगी, जबकि शेष 25% तब दिया जाएगा जब पौधों की 90% जीवित रहने की पुष्टि हो जाएगी।
किशनगंज जिले में वर्तमान में 11 चाय फैक्ट्रियां संचालित हैं, लेकिन यहां की पूरी उत्पादन क्षमता का उपयोग नहीं हो पा रहा है। इसलिए, सरकार ने चाय उत्पादन की क्षमता को बढ़ाने और आसपास के जिलों जैसे कटिहार, मधेपुरा, पूर्णिया, सहरसा और सुपौल में भी चाय की खेती शुरू करने का निर्णय लिया है।
इस योजना के तहत, टी बोर्ड ऑफ इंडिया और टी रिसर्च एसोसिएशन के साथ मिलकर भी काम किया जाएगा। भविष्य में, सरकार इस क्षेत्र में हॉर्टिकल्चर और फ्लोरीकल्चर जैसे क्षेत्रों में भी निवेश करने की योजना बना रही है, जिससे किसानों को और भी अधिक लाभ मिल सके।