समस्तीपुर बिहार का एक ऐसा जिला है, जिसकी ऐतिहासिक और सांस्कृतिक धरोहर समय की धूल में छिपी होने के बावजूद अपनी पहचान बनाए रखती है। यहाँ की विरासत में महाकाव्यकाल से लेकर आधुनिक युग तक के कई महत्वपूर्ण घटनाक्रम जुड़े हैं, जो इस जिले को राष्ट्रीय पहचान दिलाते हैं। हाल ही में एक सांसद द्वारा समस्तीपुर को लेकर दिए गए बयान ने इस गौरवशाली अतीत की अनदेखी कर दी, जिससे स्थानीय लोगों और इतिहासप्रेमियों में आक्रोश है।
समस्तीपुर के ऐतिहासिक स्थलों और महान विभूतियों का योगदान आज भी यहाँ की माटी में महसूस किया जा सकता है। यह जिला न केवल महाकवि विद्यापति की तपोभूमि रहा है, बल्कि बाबू देवकीनंदन खत्री और रामसूरत ठाकुर जैसे साहित्यकारों की जन्मस्थली भी है। इस जिले का इतिहास महाकाव्यकाल से लेकर मौर्य, शुंग और गुप्त काल तक विस्तृत है, और यहाँ के ऐतिहासिक स्थलों की कहानियाँ आज भी लोकमानस में जीवित हैं।
हालांकि, सांसद के बयान से स्थानीय लोगों को गहरा धक्का लगा है। उनके बयान से यह प्रतीत होता है कि उन्होंने जिले की ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्व को पूरी तरह नजरअंदाज कर दिया है। यह बयान, विशेष रूप से, उस क्षेत्र में जहां जननायक कर्पूरी ठाकुर जैसे महान नेताओं का योगदान रहा है, एक बड़े सवाल के रूप में खड़ा होता है। छात्र संगठनों और सामाजिक कार्यकर्ताओं ने इस बयान की कड़ी आलोचना की है, और इसे शैक्षिक अज्ञानता का प्रतीक बताया है।
इतिहास के पन्नों में समस्तीपुर का जुड़ाव लिच्छवी गणराज्य और विदेह राज्य से भी रहा है। ह्वेनसांग जैसे यात्रियों ने भी इस क्षेत्र की महत्ता को स्वीकारा है। यहाँ के ऐतिहासिक स्थलों जैसे उजियारपुर के देवखाल, जहाँ यक्ष और युधिष्ठिर का संवाद हुआ था, की गाथाएँ आज भी लोगों के बीच प्रचलित हैं। इसके बावजूद, सांसद द्वारा की गई टिप्पणियाँ स्थानीय इतिहास की अनदेखी को दर्शाती हैं, जिससे लोगों में रोष बढ़ा है।