जलवायु परिवर्तन के बढ़ते प्रभावों और कृषि पर इसके गंभीर परिणामों को समझने के लिए समस्तीपुर स्थित डॉ. राजेंद्र प्रसाद केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय, पूसा, 11 से 14 दिसंबर तक एक राष्ट्रीय कार्यशाला आयोजित करेगा। यह कार्यशाला देशभर के वैज्ञानिकों, विशेषज्ञों और नीति निर्माताओं को एक मंच पर लाकर कृषि मौसम विज्ञान पर सार्थक चर्चा का अवसर प्रदान करेगी।
चार दिवसीय इस कार्यशाला का मुख्य विषय “एग्रोमेटोरोलॉजिकल रिसर्च एंड सर्विसेज” होगा, जिसमें देश के 29 राज्यों से कृषि विश्वविद्यालयों और केंद्र सरकार के विभिन्न संस्थानों के वैज्ञानिक भाग लेंगे।
कार्यशाला का उद्देश्य जलवायु परिवर्तन के कारण फसल उत्पादन पर पड़ने वाले प्रभाव, फसल सिमुलेशन मॉडलिंग, और कृषि जलवायु संसाधनों पर मंथन करना है। इसके साथ ही, कीट और रोगों के बढ़ते प्रकोप जैसे महत्वपूर्ण विषयों पर भी चर्चा होगी।
कार्यशाला की अध्यक्षता विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ. पी.एस. पांडेय करेंगे। उन्होंने कहा, “इस कार्यक्रम से जलवायु अनुकूल कृषि के लिए ठोस रणनीतियां तैयार की जाएंगी, जो न केवल बिहार बल्कि पूरे देश में किसानों के लिए लाभकारी होंगी।”
अनुसंधान निदेशक डॉ. ए.के. सिंह ने इस कार्यशाला के महत्व को रेखांकित करते हुए कहा कि “मौसम आधारित सेवाओं से जलवायु परिवर्तन के नकारात्मक प्रभाव को कम किया जा सकता है।” उन्होंने यह भी बताया कि कार्यशाला से निकले निष्कर्ष किसानों के लिए नई उम्मीद और दिशा लेकर आएंगे।
जलवायु परिवर्तन परियोजना निदेशक डॉ. रत्नेश झा ने बताया कि कार्यशाला में भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर), भारत मौसम विज्ञान विभाग और अन्य प्रमुख संस्थानों के अधिकारी शामिल होंगे। बिहार के कृषि मंत्री के भी शामिल होने की संभावना है।
कार्यशाला की सफल आयोजन के लिए कुलपति की अध्यक्षता में 20 से अधिक समितियों का गठन किया गया है। ये समितियां कार्यशाला के प्रत्येक पहलू को सुचारू रूप से संचालित करने के लिए लगातार कार्यरत हैं। विशेषज्ञों की उपस्थिति इसे और अधिक प्रभावी और उपयोगी बनाने का प्रयास कर रही है।