दिल्ली हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा कि बाल यौन शोषण की शिकार पीड़िता के बयान ही आरोप साबित करने के लिए पर्याप्त है। हाईकोर्ट ने इस मामले में पीड़िता के बयानों पर दोषी की 12 साल की सजा बरकरार रखी।

न्यायमूर्ति मनोज कुमार ओहरी की पीठ ने पॉक्सो के तहत दोषी की सजा के खिलाफ अपील खारिज कर दी। अदालत ने कहा कि यौन अपराध के मामलों की पीड़िता का दर्द इतना गहरा होता है कि उस पर भरोसा न करने की कोई वजह नहीं है।

फिर यहां तो एक महज दस साल की बच्ची का मामला है। इस मामले में कड़कड़डूमा की विशेष पॉक्सो अदालत ने आरोपी टोनी को 25 फरवरी 2019 को दुष्कर्म और पॉक्सो के तहत दोषी ठहराया था और 27 फरवरी को सजा सुनाई थी।


क्या था मामला
यह मामला 4 अगस्त, 2017 को एक 10 वर्षीय बच्ची ने आरोप लगाया कि अपीलकर्ता (टोनी) जो उसके स्कूल के रास्ते में एक लकड़ी की दुकान पर काम करता था, उसे चाऊमीन व कचौड़ी जैसी खाने की चीजें देता था। बच्ची ने आरोप लगाया कि टोनी ने उसे बार-बार अपनी दुकान पर ले जाकर उससे कई बार दुष्कर्म किया। पीड़िता ने बताया कि आरोपी हर बार उसे धमकाता था कि अगर उसने किसी को बताया तो वह उसे नाली में डुबो देगा या लड़की काटने वाले कटर से काट देगा।



