केंद्रीय चयन पर्षद (सिपाही भर्ती) के तत्कालीन अध्यक्ष एवं बिहार के पूर्व डीजीपी संजीव कुमार सिंघल के खिलाफ विभागीय कार्यवाही चल सकती है. विभागीय कार्यवाही के तहत उनको मिल रही पेंशन पर आंशिक या पूर्ण रूप से रोक लग सकता है. सिपाही बहाली पेपर लीक मामले में पूर्व डीजीपी की संलिप्तता सामने आने और आर्थिक अपराध इकाई (इओयू) के स्तर पर कार्रवाई की अनुशंसा के बाद इसको लेकर संभावना बन रही है. फिलहाल पुलिस मुख्यालय और गृह विभाग इओयू की रिपोर्ट का अध्ययन कर रहा है.
विभागीय कार्यवाही के बारे में जानिए…
गृह विभाग के सूत्रों के मुताबिक किसी रिटायर्ड अधिकारी के खिलाफ भ्रष्टाचार के मामले में विभागीय कार्यवाही चलाते हुए उनको दी जाने वाली सरकारी पेंशन को जब्त किये जाने का प्रावधान है. अंशत: पांच-दस फीसदी से लेकर पूर्ण पेंशन जब्ती की कार्रवाई होती है. अगर रिटायरमेंट बेनिफिट नहीं लिया गया होगा तो उसे भी रोका जा सकता है.
मुख्यमंत्री के स्तर पर होगी कार्रवाई, ईओयू ने कर दी है अनुशंसा
सूत्रों के मुताबिक किसी सरकारी अधिकारी पर भ्रष्टाचार के मामले में घटना के चार साल के अंदर तक विभागीय कार्रवाई चलाने की अनुमति दी जा सकती है. चूंकि इओयू ने कार्रवाई की अनुशंसा गृह विभाग से कर दी है और आरोपी डीजीपी स्तर के आइपीएस अधिकारी रहे हैं. इसलिए उनके विरुद्ध कार्रवाई मुख्यमंत्री के स्तर पर ही होगी. कार्रवाई के लिए गृह मंत्रालय और केंद्रीय लोक सेवा आयोग (यूपीएससी) की सहमति की भी आवश्यकता होगी. उनके खिलाफ जो आरोप लगे हैं, उसको देखते हुए अधिकतम पांच से दस फीसदी तक पेंशन रोकने की कार्रवाई की संभावना है.
पावर होल्डिंग कंपनी में सुरक्षा सलाहकार का संभाल रहे पद
सिपाही बहाली पेपर लीक मामले में लगे आरोपों के बाद एसके सिंघल को केंद्रीय चयन पर्षद (सिपाही भर्ती) के अध्यक्ष पद से हटा दिया गया. हालांकि बाद में उन्होंने बिहार स्टेट पावर होल्डिंग कंपनी में सुरक्षा सलाहकार की जिम्मेदारी संभाल ली. बिजली कंपनी ने इस पद का सृजन करते हुए संविदा के आधार पर उनका नियोजन किया. इस पद पर उनको कंपनी के निदेशक के बराबर सुविधाएं दी जाती हैं. 15 सितंबर को उनकी नियुक्ति के छह माह पूरे हो जायेंगे.
भ्रष्टाचार मामले में पूर्व डीजीपी नारायण मिश्रा की संपत्ति हुई थी जब्त
बिहार में किसी पूर्व डीजीपी के खिलाफ कार्रवाई का यह पहला मामला नहीं है. इससे पहले पूर्व डीजीपी नारायण मिश्र के खिलाफ भ्रष्टाचार मामले में निगरानी विभाग ने 2007 में उनके खिलाफ केस दर्ज करते हुए रूकनपुरा स्थित उनके आवास को जब्त करने की कार्रवाई की थी. इस केस में उनके विरुद्ध 1984 से 2007 के बीच आय से 1.40 करोड़ रुपये अधिक संपत्ति बनाने का आरोप लगा था. इस आदेश के खिलाफ नारायण मिश्रा ने हाइकोर्ट में भी याचिका दायर की थी, जिसे खारिज कर दिया गया.
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