Vaishali Bank Scam : प्रवर्तन निदेशालय ने वैशाली शहरी विकास (वीएसवी) सहकारी बैंक में धन की कथित हेराफेरी की जांच के तहत 10 जनवरी को समस्तीपुर जिले के उजियारपुर से राजद विधायक आलोक कुमार मेहता और उनसे कथित तौर पर जुड़े कुछ अन्य लोगों के ठिकानों पर छापेमारी की थी। जिसके बाद बैंक में कथित गबन से जुड़े मनी लॉन्ड्रिंग मामले की जांच के तहत एक पूर्व मुख्य कार्यकारी अधिकारी (सीईओ) समेत चार लोगों को गिरफ्तार किया गया है।
गिरफ्तार किए गए लोगों में बैंक के पूर्व सीईओ विपिन तिवारी, उनके ससुर राम बाबू शांडिल्य, नितिन मेहरा और संदीप सिंह शामिल हैं। सूत्रों ने बताया कि आरोपियों को यहां एक विशेष अदालत में पेश किया गया और न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया। आइए जानते हैं कि पूर्व मंत्री और राजद नेता आलोक मेहता का इस बैंक से क्या संबंध है, बैंक पर क्यों छापेमारी की गई?
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक वैशाली अर्बन डेवलपमेंट कोऑपरेटिव बैंक में करीब 100 करोड़ रुपये का घोटाला सामने आया है। इस घोटाले में हजारों निवेशकों की जमा राशि को फर्जी लोन के सहारे गबन करने का आरोप है। इस घोटाले में बिहार सरकार के पूर्व मंत्री और आरजेडी नेता आलोक मेहता का नाम सामने आया है।
आपको बता दें कि जून 2023 में भारतीय रिजर्व बैंक ने 35 साल से बैंकिंग कारोबार कर रहे इस बैंक पर वित्तीय लेन-देन पर रोक लगा दी थी। शुरुआती जांच में 5 करोड़ रुपये के गबन की बात सामने आई थी, लेकिन विस्तृत जांच में यह रकम 100 करोड़ तक पहुंच गई। ईडी के एक अधिकारी के मुताबिक कथित धोखाधड़ी करीब 400 लोन खातों के जरिए की गई और पैसे को “फर्जी” वेयरहाउस रसीदों के आधार पर बांटा गया।
जानकारी के अनुसार करीब 35 साल पहले पूर्व मंत्री आलोक मेहता के पिता तुलसीदास मेहता ने हाजीपुर में वैशाली अर्बन कोऑपरेटिव बैंक की शुरुआत की थी। कुछ ही समय में बैंक में ग्राहकों की भीड़ उमड़ने लगी। वर्ष 1996 में इस बैंक को आरबीआई का लाइसेंस भी मिल गया। पिता के राजनीतिक प्रभाव के आधार पर आलोक मेहता बैंक के चेयरमैन (1995 से) बन गए और वर्ष 2012 तक बैंक का प्रबंधन संभालते रहे।
इस बीच वर्ष 2004 में वे उजियारपुर से लोकसभा का चुनाव जीतकर सांसद बन गए, लेकिन आलोक मेहता बैंक का प्रबंधन संभालते रहे। वर्ष 2012 में अचानक आलोक मेहता ने बैंक प्रबंधन की शीर्ष कमान अपने पिता तुलसीदास मेहता को सौंप दी और खुद को बैंक से अलग कर लिया। वर्ष 2015 में भी इसी तरह की अनियमितताएं पाई गई थीं, जिसके कारण आरबीआई ने बैंक के वित्तीय कारोबार को बंद कर दिया था। अनियमितताओं के आरोप में आलोक मेहता के पिता तुलसीदास मेहता पर कार्रवाई भी हुई थी। लेकिन, मामला सुलझने के बाद बैंक की कमान आलोक मेहता के भतीजे संजीव को सौंप दी गई और संजीव इस बैंक के चेयरमैन बने रहे।
जानकारी के मुताबिक, लिच्छवी कोल्ड स्टोरेज प्राइवेट लिमिटेड और महुआ कोऑपरेटिव कोल्ड स्टोरेज नामक दो कंपनियों ने फर्जी दस्तावेजों के आधार पर बैंक से करीब 60 करोड़ का लोन लिया था। फर्जी दस्तावेजों के सहारे किसानों के नाम पर दिए गए करोड़ों के इस लोन में बैंक ने नियम-कायदों को ताक पर रखकर लोन भी जारी किया था।
यह भी पता चला कि बैंक ने फर्जी एलआईसी बॉन्ड और लोगों के फर्जी पहचान पत्रों की मदद से 30 करोड़ रुपये से ज्यादा की रकम निकाली थी। इस घोटाले में पूर्व मंत्री आलोक मेहता और उनके परिवार की भूमिका संदिग्ध मानी जा रही थी। घोटाले का दाग बिहार सरकार में पूर्व भूस्वामित्व मंत्री आलोक मेहता पर लग रहा था। मंत्री का परिवार सीधे तौर पर इस कोऑपरेटिव बैंक और फर्जी लोन निकालने वाली दोनों कंपनियों से जुड़ा हुआ है।
खबरों के अनुसार आलोक मेहता 1995 से 2012 तक बैंक के चेयरमैन थे। आरोप है कि उनके चेयरमैन रहते ही घोटाले की नींव रखी गई। बैंक का प्रबंधन उनके परिवार के पास ही रहा और फर्जी लोन लेने वाली कंपनियों का भी मंत्री के परिवार से सीधा कनेक्शन बताया जा रहा है।
बैंक घोटाले के पीड़ित अपनी जीवनभर की जमापूंजी गंवाने के बाद गुस्से में हैं। खाताधारकों ने मंत्री के भतीजे और बैंक के मौजूदा चेयरमैन संजीत मेहता को घेर लिया है। संजीत ने घोटाले के लिए सीधे तौर पर पूर्व मंत्री आलोक मेहता को जिम्मेदार ठहराया है। घोटाले के सिलसिले में हाजीपुर नगर थाने में दो अलग-अलग प्राथमिकी दर्ज की गई है। बैंक के सीईओ और मैनेजर फरार हैं। पुलिस और अन्य एजेंसियां मामले की गहन जांच कर रही हैं।
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