जब भी दिवाली का त्योहार आता है, समस्तीपुर जिले के ताजपुर में बनी मूर्तियों की खास मांग बाजारों में देखी जाती है। यहां के कारीगर न सिर्फ स्थानीय बाजार बल्कि वैशाली और बेगूसराय के बाजारों में भी अपनी मूर्तियों की पहचान बनाए हुए हैं, जो ताजपुर के इस कला केंद्र को खास बनाता है।
ताजपुर के करीब एक दर्जन परिवार पूरी तरह से मूर्ति निर्माण व्यवसाय पर निर्भर हैं। इन परिवारों में हजारी पंडित, अजय पंडित, लक्ष्मी पंडित, और महेश पंडित के परिवार शामिल हैं। इनके लिए मूर्तियों का निर्माण ही आजीविका का मुख्य साधन है। परिवार के बच्चे भी अपने माता-पिता के साथ मिलकर खाली समय में इस कला में योगदान देते हैं।
मूर्तिकार लक्ष्मी पंडित बताते हैं कि वे ताजपुर में मिट्टी और प्लास्टर ऑफ पेरिस का उपयोग करके विभिन्न देवी-देवताओं की मूर्तियां बनाते हैं। दिवाली के सीजन में लक्ष्मी, गणेश और मां काली की मूर्तियों की मांग सबसे ज्यादा होती है। छोटे से लेकर बड़े आकार की मूर्तियां, जिनकी कीमत पांच रुपये से ढाई सौ रुपये तक होती है, तैयार कर बाजार में भेजी जाती हैं। सीमावर्ती जिलों जैसे वैशाली के पातेपुर, बहुआरा, महुआ और जंदाहा, और साथ ही बेगूसराय और खगड़िया तक इन मूर्तियों की आपूर्ति की जाती है।
लक्ष्मी पंडित ने बताया कि दिवाली के सीजन में लगभग दस हजार मूर्तियों की खपत होती है, जो इस व्यवसाय की स्थिरता और मांग को दर्शाती है। यहां सालभर विभिन्न अवसरों के लिए मूर्तियां बनाई जाती हैं, जिनमें ऑर्डर पर बड़ी मूर्तियां भी शामिल होती हैं। बड़े ऑर्डर्स के तहत मूर्तियों की कीमत पांच सौ से पांच हजार रुपये तक हो सकती है, लेकिन ज्यादातर छोटे आकार की मूर्तियां ही बनाई जाती हैं, जिनकी कीमत पांच से ढाई सौ रुपये के बीच होती है।
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