Samastipur: मिथिलांचल की समृद्ध सांस्कृतिक धरोहर और लोक परंपराओं का गवाह बनने वाला सात दिवसीय सामा-चकेवा पर्व, कार्तिक पूर्णिमा की रात को संपन्न हुआ। भाई-बहन के अटूट प्रेम का प्रतीक माने जाने वाले इस पर्व के अवसर पर मिथिलांचल के विभिन्न घाटों पर भक्तिभाव और सांस्कृतिक रंग देखने को मिला, जहाँ परंपरागत लोकगीतों के साथ सामा-चकेवा की विदाई दी गई।
समस्तीपुर जिले सहित पूरे मिथिलांचल में कार्तिक पूर्णिमा के अवसर पर शुक्रवार रात महिलाओं और युवतियों ने लोकगीत गाते हुए सामा-चकेवा का विसर्जन किया। कमला और बूढ़ी गंडक जैसी नदियों के किनारे पारंपरिक तरीके से सजे घाटों पर इस पर्व का समापन हुआ। सामा-चकेवा की मूर्तियों को नम आँखों से विदा करते समय घाटों पर सांस्कृतिक कार्यक्रम और आतिशबाजी ने एक खास माहौल बना दिया।
मिथिलांचल में यह पर्व भाई-बहन के रिश्ते को समर्पित है, जिसमें बहनें सामा और चकेवा की मूर्तियाँ बनाकर पूरे सप्ताह पूजा करती हैं। प्रतिदिन रात में वे पारंपरिक गीत गाते हुए गाँव की सड़कों पर सामूहिक रूप से इकट्ठा होती हैं और इस अनोखे पर्व को धूमधाम से मनाती हैं। इस दौरान ‘सामा-चकेवा’ के विभिन्न गीतों की गूँज से पूरा वातावरण संगीतमय हो जाता है।
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