Bihar AQI: बिहार में वायु प्रदूषण की मार अब तेजी से बढ़ने लगी है और बड़े शहरों में ही नहीं अब छोटे शहरों और कस्बों में भी हवा की गुणवत्ता खराब पायी जाने लगी है जो चिंता का विषय बन चुका है. पिछले कुछ सालों में बिहार के बेगूसराय और हाजीपुर शहर देश के खराब हवा वाले शहरों की टॉप लिस्ट में शामिल है. अनेकों कारणों की वजह से हाजीपुर समेत कई शहरों की हवा जहरीली पायी गयी. एयर क्वालिटी बिगड़ने से सांसों पर आफत आ पड़ी है.
हाजीपुर में गैस चेंबर की स्थिति, 400 पार एक्यूआई
बिहार के हाजीपुर शहर की हवा इस तरह बिगड़ी कि मानो यह गैस चेंबर बन गया हो. पिछले पखवारे यहां का एक्यूआई लेवल 425 से भी ऊपर चला गया. जिसके बाद प्रशासन की नींद टूटी और तमाम प्रयास के बाद 10 दिनों में इसे 350 के करीब लाया जा सका. लेकिन टॉप 5 प्रदूषित शहरों में अभी भी हाजीपुर शामिल ही है. इसबार नवंबर महीने में हाजीपुर ने दिल्ली को भी प्रदूषण के मामले में पछाड़ दिया. 26 नवंबर से 30 नवंबर तक यहा का एक्यूआई 300 के पार ही दर्ज हुआ.
बेगूसराय और सीवान की भी हवा जहरीली
बेगूसराय को बढ़ रहे औद्योगिक विकास से रफ्तार तो मिली है लेकिन यहां की हवा जिस तरह प्रदूषित हो रही है वो चिंता का विषय है. शनिवार यानी 30 नवंबर को यहां का एक्यूआई 226 रहा, जो वायु प्रदूषण के खराब श्रेणी में आता है. शहर की हवा लगाातार जहरीली हो रही है. सीवान का एक्यूआई भी न्यूनतम पैमाने से करीब 4 गुणा अधिक दर्ज किया गया है.
गोपालगंज में प्रदूषण की मार, बक्सर और छपरा की भी हवा हुई जहरीली
गोपालगंज में नवंबर का महीना इस साल का सबसे प्रदूषित महीना रहा. शनिवार को यहां का एक्यूआई 198 दर्ज किया गया. 1 से 24 नवंबर तक का औसत एक्यूआई यहां 306 रहा है. पूर्वानुमान है कि दिसंबर के पहले सप्ताह में यहां की हवा खराब ही रहेगी. नवंबर महीने में 15 दिन बेहद खराब तो 8 दिन खराब स्तर का प्रदूषण जिले में रहा है. पंचकोसी मेला के समय बक्सर जिले में वायु गुणवत्ता सूचकांक 336 तक पहुंच गया था. लोग मास्क लगाकर बाहर निकलने पर मजबूर हो गए. वहीं छपरा में साल भर में करीब 7 से 8 महीने तक हवा की गुणवत्ता खराब ही रहती है. यहां सांस से जुड़ी बीमारियां लोगों में बढ़ रही है.
हवा की गुणवत्ता बिगड़ने की वजह
धूल की मात्रा अधिक होना
जगह-जगह कचरे में आग लगना
खुले में कचरे को फेंकना
निर्माण वाले इलाके में पानी का छिड़काव नहीं करना
शहर में ग्रीन जोन की कमी होने से
निर्माण कार्य के दौरान ग्रीन पर्दे का इस्तेमाल नहीं करने से
स्वास्थ्य के लिए कितना है खतरनाक?
दमा, ब्रोंकाइटिस और फेफड़ों का रोग बढ़ रहा
ब्रेन स्ट्रोक के मामले बढ़ रहे
लंग्स फेलिओर का खतरा बढ़ रहा
आंखों की रोशनी 5 से 15 साल कम हो रही
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