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Bihar Politics : क्या नीतीश कुमार NDA को फिर कहेंगे टाटा-बाय? जानिए सर्दी के मौसम में भी क्यों बढ़ा है बिहार का राजनीतिक पारा.

Bihar Politics : बिहार में इन दिनों राजनीतिक सरगर्मी बढ़ी हुई है। सीएम नीतीश कुमार को लेकर एक बार फिर अटकलों का बाजार गर्म है। खबर है कि नीतीश कुमार एनडीए से बेहद खफा हैं और किसी भी वक्त नीतीश के नए कदम की जानकारी मिल सकती है। खबरों के अनुसार अमित शाह के संसद में अंबेडकर को लेकर दिए गए बयान को अंबेडकर का अपमान बताते हुए आम आदमी पार्टी के संयोजक और दिल्ली के पूर्व सीएम अरविंद केजरीवाल ने नीतीश कुमार को पत्र लिखा था। इसके बाद बिहार के सीएम नीतीश कुमार अचानक बीमार पड़ गए थे।

इस बीच एनडीए की बैठक के बाद बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष दिलीप जायसवाल ने नीतीश के नेतृत्व में चुनाव लड़ने का बयान दिया तो जायसवाल ने यह कहकर अपने बयान से पलटवार किया कि यह केंद्रीय नेतृत्व का फैसला है। दिल्ली में अचानक बीजेपी कोर कमेटी की बैठक और 8 जनवरी को अमित शाह का बिहार आने का कार्यक्रम। ये एक हफ्ते के अंदर हुए राजनीतिक घटनाक्रम हैं।

नीतीश की चुप्पी ने अटकलों को हवा दी :

इन सबके अलावा नीतीश कुमार की चुप्पी। चुप्पी अक्सर इंसानी फितरत के खतरनाक नतीजों का संकेत साबित होती है। खास तौर पर नीतीश की चुप्पी अब तक ऐसी ही साबित हुई है। लोगों ने इसे पहले भी महसूस किया है। यही वजह है कि पटना से लेकर दिल्ली तक के लोग बिहार की राजनीति में फिर से बदलाव के संकेत महसूस कर रहे हैं। कयास लगाए जा रहे हैं कि नीतीश कुमार फिर से पाला बदलेंगे। जाहिर है कि अगर वे ऐसा करते हैं तो वे फिर से इंडिया ब्लॉक में चले जाएंगे। अगर ऐसा होता है तो यह भाजपा के लिए शुभ नहीं होगा।

 

 

क्या नीतीश कुमार एनडीए छोड़ पाएंगे?

हालांकि लोग नीतीश कुमार के एनडीए से अलग होने के कयास लगा रहे हैं और इसके लिए उल्टी गिनती शुरू होने का अनुमान लगाया जा रहा है, लेकिन नीतीश कुमार का पाला बदलना आसान नहीं लगता। इसे कुछ संकेतों से समझिए। जदयू के कार्यकारी राष्ट्रीय अध्यक्ष संजय झा ने अंबेडकर पर अमित शाह के बयान का समर्थन किया है। वक्फ संशोधन विधेयक से लेकर संविधान पर बहस तक भाजपा के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष और मौजूदा केंद्रीय मंत्री राजीव रंजन उर्फ ​​ललन सिंह भाजपा के साथ खड़े रहे हैं। इतना ही नहीं, जदयू सांसद देवेश चंद्र ठाकुर और ललन सिंह मुसलमानों को लेकर भाजपा की ही भाषा बोलते सुने गए हैं। ये लोग खुलकर भाजपा की भाषा बोल रहे हैं, कुछ सांसद और विधायक भी भाजपा के मूक समर्थक होंगे। एनडीए से अलग होने से पहले नीतीश ने इस खतरे को जरूर भांप लिया होगा।

भाजपा रही है भरोसेमंद सहयोगी :

नीतीश यह भी जानते हैं कि भाजपा उनकी सबसे बड़ी सहयोगी रही है। नीतीश जानते हैं कि भले ही उन्होंने समय-समय पर भाजपा को धोखा दिया हो, लेकिन भाजपा ने हमेशा उनका सम्मान किया है। भले ही वे 43 विधायकों वाली पार्टी जेडीयू के नेता हैं, लेकिन भाजपा ने उन्हें बहला-फुसलाकर सीएम की कुर्सी सौंप दी। भाजपा ने अपने 74 विधायकों की ताकत छोड़ दी है। अपवादों को छोड़कर अब उनके लिए भाजपा जैसा भरोसेमंद सहयोगी पाना असंभव है। नीतीश को अपनी स्थिति और खराब स्वास्थ्य का अंदाजा जरूर होगा। ऐसे में उन्हें यह भी अहसास हो रहा होगा कि अब जोखिम उठाने का कोई मतलब नहीं है। इसलिए ऐसा नहीं लगता कि वे एनडीए से अलग होने का फैसला लेंगे।

‘भारत’ में सीएम पद के लिए कोई जगह खाली नहीं है :

नीतीश यह भी जानते हैं कि एनडीए से अलग होने के बाद ‘भारत’ ही एकमात्र विकल्प है। ‘भारत’ में तेजस्वी यादव पहले से ही सीएम पद के लिए ‘मत चूको चौहान’ की मुद्रा में खड़े हैं। वहां छल-कपट से भी सीएम की कुर्सी नहीं मिलने वाली है। पिछली बार तेजस्वी की फजीहत हो चुकी है। अब नीतीश के बारे में कोई भी फैसला लेने से पहले तेजस्वी सौ बार सोचेंगे। इसीलिए उन्हें अपने ही ‘भारत’ में भी सम्मानजनक आश्रय मिलना मुश्किल है। ऐसे में वे किस काम के लिए कहीं जाएंगे!

नीतीश कुमार किस्मतवाले हैं :

वैसे, यह भी सच है कि नीतीश कमज़ोर होने के बावजूद ख़राब हालत में भी सीएम बनने की क्षमता रखते हैं। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि भविष्य में भी वे जब तक चाहेंगे, सीएम बने रहेंगे। बीजेपी के साथ रहने पर उनके लिए सीएम बनना जितना आसान होगा, ‘भारत’ के साथ जाने पर उतना ही मुश्किल होगा। सच कहें तो यह नामुमकिन होगा। आप मौजूदा हालात से अंदाजा लगा सकते हैं। अगर वे अपने 43 विधायकों के साथ सरकार छोड़ देते हैं, तो कोई भी पार्टी या गठबंधन सरकार बनाने की स्थिति में नहीं होगा। बीजेपी अपने स्वाभाविक दुश्मन आरजेडी से हाथ नहीं मिला सकती। ऐसा करना आरजेडी के लिए भी आत्मघाती कदम साबित होगा। यानी पार्टी या गठबंधन के पास सबसे ज़्यादा विधायक होने पर भी कोई सरकार नहीं बना सकता। 2005 से लेकर अब तक जब नीतीश कुमार राजनीति में उभरे, 2020 नीतीश के लिए सबसे खराब साल रहा, जब जेडीयू के सिर्फ 43 उम्मीदवार ही विधायक बन पाए।

चिराग ने जेडीयू को बर्बाद कर दिया :

हालांकि जेडीयू की दुर्दशा की असली वजह जानने के बाद नीतीश को थोड़ी संतुष्टि जरूर मिली कि उनकी ताकत उतनी कम नहीं हुई है, जितनी नतीजों में दिख रही है। दरअसल चिराग पासवान ने खुद को नरेंद्र मोदी का हनुमान बताते हुए नीतीश के उम्मीदवारों के खिलाफ एलजेपी के उम्मीदवार उतारे थे। अगर उनके उम्मीदवारों को जितने वोट मिले, उतने एनडीए के नाम पर डाले गए होते तो जेडीयू के 36 और विधायक जीत जाते। इसे नीतीश की किस्मत कहें या बिहार के लिए उनके काम के लिए जनता से मिला आशीर्वाद कि सीएम की कुर्सी उनके इर्द-गिर्द घूमती नजर आ रही है। अब यह उनकी इच्छा और भगवान की कृपा पर निर्भर करता है कि वे सीएम की कुर्सी कब छोड़ते हैं। यानी उनके त्याग पर ही दूसरी पार्टियां अपने सीएम के बारे में सोच सकती हैं।

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